Tuesday, June 2, 2015

ऐसा परिवार है, मेरा.
( यह रचना, २३ जनवरी २०१४ को लिखी गई, )

कठिन समय है, बदलेगा यह,    ऐसा मेरा, है विश्वास.
हार नहीं मानूंगा, डरकर,  जब तक, चलती है, ये साँस.
माँ – पापा से, मिली विरासत,  गुरु से, शिक्षा – दीक्षा.
कब, आयेगी काम ?  आज है,   मेरी कठिन परीक्षा.

नफरत नहीं, प्यार की सीख मिली,  कोशिश ऐसा करने की है.
मिलजुल,  मसले  सुलझा लेंगे,   यही सोच,  चलने की है.
परिवार ही मेरा, है सब – कुछ,  परिवार का हित, सबसे ऊपर.
यही धर्म है.  यही कर्म है,   यही प्रार्थना,   सो – जगकर.

सच्चाई का मार्ग,  कठिन है,   चला,  तभी, यह जाना.
न्याय – धर्म,  मेरे साथी हैं,   डरना नहीं है,  ठाना.
नहीं  रुकूँगा,   नहीं  हटूंगा,    तूफानों के,  डर से.
एक – एक मुश्किल,  दूर करूँगा,  कोशिश है, तन – मन से.

  
मेरा अस्तित्व, परिवार से है’  परिवार- बिना , मैं, कुछ भी, नहीं.
परिवार बना, पत्नि से ही,   थी पत्नि नहीं,  था, कुछ भी, नहीं.
मेरी पत्नि,  लाखों में एक,    जिसने,  ये घर – परिवार दिया.
दोनों – बेटे,  सोने – जैसे,   बेटी नहीं कम,  ये सिद्ध किया.

ईश्वर का दिया,  सभी – कुछ है,  संभाल सका, तो स्वर्ग है, ये.
अब अग्नि – परीक्षा,  है मेरी,  जीवन - संघर्ष,  स्वीकार है, ये.
ऐसी आशा,  विश्वास मेरा,    ये मुझको,   बल देता है
सच होगा, ये सपना,  मेरा,    मन,  मुझसे,  ये कहता है. 

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