Wednesday, June 3, 2015

हम  जीतेंगे.
( यह रचना, मूलतः २५ जनवरी २०१४ को लिखी गई. )

आज,  बदली  छाई है,   छाया है   अँधेरा.
सुबह का  समय हो गया,  नहीं हुआ सवेरा.
सब, बाट जोहते,  प्राणी,  कब,  छंटे अँधेरा ?
उजियारे की दस्तक हो,  आतुर, मन- मोर, बघेरा.

बाहर अँधियारा है ही,   मन भी,  हो रहा अनमना.
जब – जब, मन में ,मैं झाँकू, धुंधले चेहरे हैं, आइना.
कल था, जो, उजला – उजला, वही है, बदला – बदला.
समय का चक्र, घूमता,  कहीं  सूखा,  कहीं जलजला.

आज  मैं,  हारा हूँ,    कल,  हम,  जीतेंगे.
आज, कुछ  खोया है,   कल,  सब पायेंगे.
आज, जो धुंधला – धुंधला,  चमकेगा कल, कोना – कोना.
आज,  मन – मीत,  हार मत,   कल है,  सोना – सोना.

अब,  मंजिल दूर नहीं है,   दुःख,  छंटे, अँधेरा.
उदय, सुख – सूरज होगा,  खुशियाँ, डालेंगी डेरा.
जिन्दगी, मुस्कायेगी,  सभी, हम, मिल – बाँटेंगे.
आज हम जीत जायेंगे,   कल भी,  हम, जीतेंगे.

-    - - - - ० - - - - -





No comments: